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Jagannath Ashtakam

Jagannath Ashtakam (श्री जगन्नाथ अष्टकम्) | Stotra Path

Jagannath Ashtakam – Author: Adi Sankaracarya

Here Is a Full Jagannath Ashtakam, Read It by Love

Jagannath Ashtakam (1)

kadacit kalinditatavipinasangitakaravo mudabhirinarivadanakamalasvadamadhupah 

ramasambhubrahmamarapati- ganesarcitapado jagannathah svami nayanapathagami bhavatu me 

कदाचित् कालिन्दी तट विपिन सङ्गीतक रखो मुदाभीरी नारी वदन कमला स्वाद मधुपः

रमा शम्भु ब्रह्मामरपति गणेशार्चित पदो जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे ॥1॥ 

Jagannath Ashtakam

भगवान् जगन्नाथ कभी कभी, कालिंदी नदी के तटों पर समस्त कुंजो में, संगीत वादन करते हुए (बजाते हुए) और गाते हुए, संगीतात्मक मधुर ध्वनि उत्पन्न करते हैवे व्रज बालाओ के कमल सदृश मुखों के अमृत रस का आस्वादन करते हुए, महान हर्षोल्लास का अनुभव करते हुए, एक भौरें के समान हैउनके चरण कमल, लक्ष्मीजी, शिवजी, ब्रह्मा जी, इन्द्र एवं गणेश जैसे महान व्यक्तियों द्वारा पूजे जाते हैकृपया, ब्रह्मांड के वे स्वामी, मुझे भी दृष्टिगोचर हो जाएं। 

Jagannath Ashtakam (2) 

bhuje savye venum sirasi sikhipuccham katitate 

dukulam netrante sahacarakataksam vidadhate sada srimadvrndavanavasatililaparicayo jagannathah svami nayanapathagami bhavatu me 

भुजे सव्ये वेणुं शिरसि शिखिपिंछं कटितटे दुकूलं नेत्रांते सहचरि कटाक्षं विदधते 

सदा श्रीमद् वृंदावन वसति लीलापरिचयो 

जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे 2 ॥ 

अपने बायें हाथ में वे एक बांसुरी धारण किए रहते है, अपने शीश पर एक मोरपंख, और अपने कूल्हों के चारों ओर एक उत्तम सिल्क का वस्त्र। अपने नेत्रों के कोनों से, वे अपने प्रिय सखाओं पर तिरछी नज़रों से दृष्टिपात करते हैंवे श्री वृंदावन में रहते हुए जो लीलाएं करते हैं, उन्हें वे अत्यधिक प्रिय हैकृपया, ब्रह्मांड के वे स्वामी, मुझे भी दृष्टिगोचर हो जाएं। 

Jagannath Ashtakam (3

mahambhodhes tire kanakarucire nilasikhare 

vasan prasadantah sahajabalabhadrena balina subhadramadhyasthah sakalasurasevavasarado jagannathah svami nayanapathagami bhavatu me 

महाम्भोधेस्तीरे कनकरुचिरे नीलशिखरे वसन्प्रासादान्त -सहज बलभद्रेण बलिना

सुभद्रामध्यस्थ: सकल- सुरसेवावसरदो जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे 3 ॥ 

महान समुद्र के तट पर एक विशाल महल है, जो स्वर्ण की कांति से चमकता है, और जिसके शिखर पर एक ऊंची मंदिर की मीनार है जो एक चमकदार नीले नीलमणि या नीलम जैसे पर्वत के समान प्रतीत होती हैउनके अंदर वास करते हुए भगवान् जगन्नाथ, अपने भाई बलभद्र, और उन दोनों के मध्य उनकी बहन सुभद्रा के साथ, समस्त दैवी आत्माओं को विभिन्न भक्ति कार्य और सेवा कार्य संपन्न करने का अवसर प्रदान करते हैब्रह्मांड के वे स्वामी मुझे भी दृष्टिगोचर हो। 

Jagannath Ashtakam (4

krpa-paravarah sajalajaladasreniruciro ramavaniramah sphuradamalapankeruhamukhah

surendrair aradhyah srutiganasikhagitacarito jagannathah svami nayanapathagami bhavatu me 

कृपापारावार: सजल जलदश्रेणिरुचिरो रमावाणीरामः स्फुरदमल पंकेरुह मुखः

सुरेन्द्र राराध्यः श्रुतिगणशिखागीतचरितो जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 4 ॥ 

वे अहैतुकी कृपा के अथाह सागर हैं और उनका सुंदर वर्ण काले गहरे वर्षा के बादलों के झुंड के समान हैवे अपनी प्रेयसी देवी लक्ष्मी द्वारा दिए गए कठोर दंड या कटु आलोचना के स्नेहपूर्ण शब्द सुनकर अत्यधिक सुख आनंद प्राप्त करते हैंउनका मुख एक दोष रहित पूर्ण खिले हुए कमल पुष्प के समान हैं वे श्रेष्ठ देवी देवताओं एवं साधु संतो द्वारा पूजे जाते है, और उनका चरित्र उनके कार्यकलाप सर्वोच्च मूर्तिमान उपनिषदो द्वारा गीत रूप में गाकर महिमान्वित किए जाते हैकृपया ब्रह्मांड के वे स्वामी मुझे भी दृष्टिगोचर हो। 

(5) 

ratharudho gacchan pathi militabhudevapatalaih stutipradurbhavam pratipadam upakarnya sadayah dayasindhur bandhuh sakala jagatam sindhusutaya jagannathah svami nayanapathagami bhavatu me 

रथारूढो गच्छन् पथि मिलितभूदेव पटलैः स्तुति प्रादुर्भावं प्रतिपदमुपाकर्ण्य सदयः

दयासिन्धुर्बन्धुः सकलजगतां सिन्धुसुतया जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे 5 ॥ 

जैसे ही भगवान् रथयात्रा के समय रथ पर चढ़ते हैं और सड़क पर आगे बढ़ते हैं, वहाँ संत, ब्राह्मणों की विशाल सभाओं द्वारा गाए गये गीतों और जोर से की गई प्रार्थनाओं का निरंतर उच्चारण चलता रहता हैउनके स्तुतिमंत्र सुनकर, भगवान् जगन्नाथ अनुकूल रूप से उनकी ओर झुक जाऐंगेंवे दया के सागर हैं और समस्त लोकों के सच्चे मित्र हैंब्रह्माण्ड के वे स्वामी, जिनका जन्म अमृत के सागर से हुआ था, अपनी संगिनी लक्ष्मीजी सहित, कृपया मुझे दृष्टिगोचर हों । 

 (6

parabrahmapidah kuvalayadalotphullanayano 

nivasi niladrau nihita-carano nanta-sirasi rasanando radhasarasavapuralinganasukho jagannathah svami nayanapathagami bhavatu me 

परंब्रह्मापीडः कुवलयदलोत्फुल्लनयनो निवासी नीलाद्रौ निहितचरणोऽनन्तशिरसि । 

रसानन्दी राधा सरस- वपुरालिङ्गनसुखो 

जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ।। 6 ।। 

वे परब्रह्म (परम आध्यात्मिक वास्तविकता या सत्य) के शीश पर अलकृंत आभूषण हैंउनके नेत्र नीले कमल पुष्प की कर्णिकाओं के समान हैं, और वे नीलाचल मन्दिर में वास करते हैं जो एक नीलमणि पर्वत के सदृश प्रतीत होता हैउनके चरण कमल भगवान् अनंतदेव के शीश पर रखे हुए हैंवे दिव्य प्रेममयी अमृत रसों की धारा से भाव विह्वल हैं और वे केवल श्रीमती राधारानी के सुमधुर चित्तकर्षक दिव्य रूप के आलिंगन द्वारा ही प्रसन्न होते हैं। ब्रह्माण्ड के वे स्वामी कृपया मुझे भी दृष्टिगोचर हों। 

 (7) 

na vai yace rajyam na ca kanakamanikyavibhavam na yace ham ramyam sakala janakamyam varavadhum sada kale kale pramathapatina gitacarito jagannathah svami nayanapathagami bhavatu me 

वै याचे राज्यं च कनक-माणिक्य-विभवं याचेऽहं रम्यां सकलजनकाम्यां वरवधूम्

सदाकाले काले प्रमथपतिना गीतचरितो जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥7॥ 

मैं, निश्चय ही राज्य प्राप्त करने के लिए प्रार्थना नहीं करता हूँ, ही स्वर्ण, रत्न माणिक्य और धन- सम्पत्ति के लिए। मैं एक सुशील एवं सुन्दर पत्नी नहीं माँगता हूँ जिसको पाने की सभी साधारण मनुष्य अभिलाषा करते हैंमैं तो केवल ब्रह्माण्ड के उस स्वामी के लिए प्रार्थना करता हूँ, जिसकी महिमा भगवान् शिव द्वारा युगोंयुगों से गाई जा रही है, वे कृपया मुझे दृष्टिगोचर हों। 

Jagannath Ashtakam (8

hara tvam samsaram drutataram asaram surapate hara tvam papanam vitatim aparam yadavapate aho dine nathe nihita-carano niscitam idarn jagannathah svami nayanapathagami bhavatu me 

हर त्वं संसारं द्रुततरमसारं सुरपते हर त्वं पापानां विततिमपरां यादवपते !

अहो दीनेऽनाथे निहित चरणो निश्चितमिदं जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥8॥ 

हे देवताओं के स्वामी! कृपया शीघ्र ही इस व्यर्थ, निरर्थक भौतिक अस्तित्व को दूर ले जाइये जिसमें मैं फँसा हुआ जी रहा हूँहे यदुओं के स्वामी! कृपया मेरे पापपूर्ण कार्यों के फलों के असीमित संग्रह को नष्ट कर दीजिए अहो ! यह निश्चित है कि भगवान् जगन्नाथ अपने चरण कमल का आशीर्वाद उन लोगों को प्रदान करते हैं जो स्वयं को विनम्र असहाय अनुभव करते हैंब्रह्माण्ड के वे स्वामी कृपया मुझे दृष्टिगोचर हों। 

Jagannath Ashtakam (9

jagannathastakam punyam yah pathet prayatah shuci

sarva-papavishuddhaatma vishnulokam sa gacchati 

जगन्नाथाष्टकं पुण्यं यः पठेत् प्रयतः शुचि

सर्वपापविशुद्धात्मा विष्णुलोकं स गच्छति ॥9॥ 

वह आत्मनियंत्रित एवं गुणवान् व सद्गुणी व्यक्ति जो भगवान् जगन्नाथ जी को महिमान्वित करने वाले इन आठ श्लोकों का गान करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है (उसके समस्त पाप धुल जाते हैं), और वह उचित रीति द्वारा स्वतः ही भगवान् विष्णु के धाम को प्राप्त करता है। 

Hare Krishna Hare Krishna 

Krishna Krishna 

Hare Hare 

Hare Ram 

Hare Ram 

Ram Ram 

Hare Hare

Full Jagannath Ashtakam 

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